Wednesday, 3 June 2020

राजकुर सिद्धार्थ का विवाह कोलिय वंश की राजकुमारी यशोधरा से


महाराजा अंजन कोलीय (Anjan Koliya) राजर्षि चौदहवें पीढ़ी के राज पुत्र थे। जिनकी पुत्री राजकुमारी कोलिय महामाया (Mahamaya/Mayadevi) तथागत बुद्ध (Buddha/Siddhartha/ShakyaSingh) की मां थी। महाराज अंजन ने देवदह को पूर्ण विकसित कर राजधानी बनाया था। भारत वर्ष का सबसे सुन्दर नगर होने के कारण आस पास के राजाओं का प्रेम हो गया। इस लिए इसका नाम देवदह पड़ा।

राजकुमारी यशोधरा कोलिय (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व) कोलीय वंश के राजा सुप्पबुद्ध कोलिय और उनकी पत्नी पमिता की पुत्री थीं। यशोधरा की माता- पमिता राजा शुद्धोदन शाक्य की बहन थीं। १६ वर्ष की आयु में यशोधरा का विवाह राजा शुद्धोधन  के पुत्र सिद्धार्थ गौतम(शाक्यसिंह ) के साथ हुआ। बाद में सिद्धार्थ गौतम संन्यासी हुए और गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए।
 यशोधरा ने २९ वर्ष की आयु में एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल था। अपने पति गौतम बुद्ध के संन्यासी हो जाने के बाद यशोधरा ने अपने बेटे का पालन पोषण करते हुए एक संत का जीवन अपना लिया। उन्होंने मूल्यवान वस्त्राभूषण का त्याग कर दिया। पीला वस्त्र पहना और दिन में एक बार भोजन किया। जब उनके पुत्र राहुल ने भी संन्यास अपनाया तब वे भी संन्यासिनि हो गईं। उनका देहावसान ७८ वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध के निर्वाण से २ वर्ष पहले हुआ।
यशोधरा के जीवन पर आधारित बहुत सी रचनाएँ हुई हैं, जिनमें मैथिलीशरण गुप्त की रचना यशोधरा (काव्य) बहुत प्रसिद्ध है।
मंगलाचरण

राम, तुम्हारे इसी धाम में
नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ,
इसी देश में हमें जन्म दो,
लो, प्रणाम हे नीरजनाभ ।
धन्य हमारा भूमि-भार भी,
जिससे तुम अवतार धरो,
भुक्ति-मुक्ति माँगें क्या तुमसे,
हमें भक्ति दो, ओ अमिताभ !

1

नाथ, कहाँ जाते हो?
अब भी यह अन्धकार छाया है।
हा ! जग कर क्या पाया,
मैंने वह स्वप्न भी गंवाया है! 
2

सखि, वे कहाँ गये हैं?
मेरा बायाँ नयन फड़कता है।
पर मैं कैसे मानूँ?
देख; यहाँ यह हृदय धड़कता है।
3

आली वही बात हुई, भय जिसका था मुझे,
मानती हूँ उनको गहन-वन-गामी मैं,
ध्यान-मग्न देख उन्हें एक दिन मैंने कहा-
'क्यों जी, प्राणवल्लभ कहूँ या तुम्हें स्वामी मैं?'
चौंक, कुछ लज्जित से, बोले हंस आर्यपुत्र-
'योगेश्वर क्यों न होऊँ, गोपेश्वर नामी मैं !
किन्तु चिंता छोड़ो, किसी अन्य का विचार करूं
तो हूं जार पीछे, प्रिये! पहले हूँ कामी मैं !'
4

कह आली, क्या फल है
अब तेरी उस अमूल्य सज्जा का?
मूल्य नहीं क्या कुछ भी
मेरी इस नग्न लज्जा का !
5

सिद्धि-हेतु स्वामी गये, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गये, यही बड़ा व्याघात ।

सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?

मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में -
क्षात्र-धर्म के नाते 
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

हु‌आ न यह भी भाग्य अभागा,
किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते ?
गये तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से ?
आज अधिक वे भाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,
रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
पर क्या गाते-गाते ?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

6

प्रियतम ! तुम श्रुति-पथ से आये ।
तुमहें हदय में रख कर मैंने अधर-कपाट लगाये ।

मेरे हास-विलास ! किन्तु क्या भाग्य तुम्हें रख पाये ?
दृष्टि मार्ग से निकल गये ये तुम रसमय मनभाये ।
प्रियतम ! तुम श्रुति-पथ से आये ।

यशोधरा क्या कहे और अब, रहो कहीं भी छाये,
मेरे ये नि:श्वास व्यर्थ, यदि तुमको खींच न लाये।
प्रियतम ! तुम श्रुति-पथ से आये । 
7

नाथ, तुम
जाओ, किन्तु लौट आओगे, आओगे, आओगे ।
नाथ, तुम
हमें बिना अपराध अचानक छोड़ कहाँ जाओगे?
नाथ, तुम
अपनाकर सम्पूर्ण सृष्टि को मुझे न अपनाओगे?
नाथ, तुम
उसमें मेरा भी कुछ होगा, जो कुछ तुम पाओगे ।
8

सास-ससुर पूछेंगे
तो उनसे क्या अभी कहूँगी मैं ?
हा ! गर्विता तुम्हारी
मौन रहूँगी, सहूँगी मैं ।
नन्द

आर्य, यह मुझ पर अत्याचार !
राज्य तुम्हारा प्राप्य, मुझे ही था तप का अधिकार!

छोड़ा मेरे लिए हाय ! क्या तुमने आज उदार?
कैसे भार सहेगा सम्प्रति, राहुल है सुकुमार?
आर्य, यह मुझ पर अत्याचार !

नन्द तुम्हारी थाती पर ही देगा सब कुछ वार,
किन्तु करोगे कब तक आ कर तुम उसका उद्धार?
आर्य, यह मुझ पर अत्याचार !

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