Monday 8 June 2020

कोलिय(शाक्य) सिंह शब्द का प्रयोग

सिंह (Singh,Sinh) :- सिंह सब्द का सर्वप्रथम प्रयोग विष्णु के 9वे अवतार सिद्धार्थ ने किया था जिनका दूसरा नाम शाक्यसिंह था ।


सिंह (सिंघ) सब्द का प्रथम उपयोग 2500 साल पहले के एक श्लोक में मिलता है , जिसमे शाक्यसिंह सब्द का उपयोग किया गया है । ये शाक्य सिंह ,शाक्य वंश के राजकुमार सिद्धार्थ के लिए प्रयोग हुआ है ।

सिंघ सब्द का दूसरा उपयोग प्राचीन श्री लंका के सिंघल (सिंघले, सिंघाला) राज्य से मिलता है जो कि कोलिय या शाक्य गढराज्य था । राजकुमारीपद्मावती इसी राज्य की राजकुमारी थी ।

राजस्थान के अपभ्रंश हुए राजपूत "सिंघ" लगाते है ।
सिंघ सब्द का अर्थ है श्रेष्ठ ना कि शेर ।

श्लोक👇👇👇

Wednesday 3 June 2020

राजकुर सिद्धार्थ का विवाह कोलिय वंश की राजकुमारी यशोधरा से


महाराजा अंजन कोलीय (Anjan Koliya) राजर्षि चौदहवें पीढ़ी के राज पुत्र थे। जिनकी पुत्री राजकुमारी कोलिय महामाया (Mahamaya/Mayadevi) तथागत बुद्ध (Buddha/Siddhartha/ShakyaSingh) की मां थी। महाराज अंजन ने देवदह को पूर्ण विकसित कर राजधानी बनाया था। भारत वर्ष का सबसे सुन्दर नगर होने के कारण आस पास के राजाओं का प्रेम हो गया। इस लिए इसका नाम देवदह पड़ा।

राजकुमारी यशोधरा कोलिय (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व) कोलीय वंश के राजा सुप्पबुद्ध कोलिय और उनकी पत्नी पमिता की पुत्री थीं। यशोधरा की माता- पमिता राजा शुद्धोदन शाक्य की बहन थीं। १६ वर्ष की आयु में यशोधरा का विवाह राजा शुद्धोधन  के पुत्र सिद्धार्थ गौतम(शाक्यसिंह ) के साथ हुआ। बाद में सिद्धार्थ गौतम संन्यासी हुए और गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए।
 यशोधरा ने २९ वर्ष की आयु में एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राहुल था। अपने पति गौतम बुद्ध के संन्यासी हो जाने के बाद यशोधरा ने अपने बेटे का पालन पोषण करते हुए एक संत का जीवन अपना लिया। उन्होंने मूल्यवान वस्त्राभूषण का त्याग कर दिया। पीला वस्त्र पहना और दिन में एक बार भोजन किया। जब उनके पुत्र राहुल ने भी संन्यास अपनाया तब वे भी संन्यासिनि हो गईं। उनका देहावसान ७८ वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध के निर्वाण से २ वर्ष पहले हुआ।
यशोधरा के जीवन पर आधारित बहुत सी रचनाएँ हुई हैं, जिनमें मैथिलीशरण गुप्त की रचना यशोधरा (काव्य) बहुत प्रसिद्ध है।
मंगलाचरण

राम, तुम्हारे इसी धाम में
नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ,
इसी देश में हमें जन्म दो,
लो, प्रणाम हे नीरजनाभ ।
धन्य हमारा भूमि-भार भी,
जिससे तुम अवतार धरो,
भुक्ति-मुक्ति माँगें क्या तुमसे,
हमें भक्ति दो, ओ अमिताभ !

1

नाथ, कहाँ जाते हो?
अब भी यह अन्धकार छाया है।
हा ! जग कर क्या पाया,
मैंने वह स्वप्न भी गंवाया है! 
2

सखि, वे कहाँ गये हैं?
मेरा बायाँ नयन फड़कता है।
पर मैं कैसे मानूँ?
देख; यहाँ यह हृदय धड़कता है।
3

आली वही बात हुई, भय जिसका था मुझे,
मानती हूँ उनको गहन-वन-गामी मैं,
ध्यान-मग्न देख उन्हें एक दिन मैंने कहा-
'क्यों जी, प्राणवल्लभ कहूँ या तुम्हें स्वामी मैं?'
चौंक, कुछ लज्जित से, बोले हंस आर्यपुत्र-
'योगेश्वर क्यों न होऊँ, गोपेश्वर नामी मैं !
किन्तु चिंता छोड़ो, किसी अन्य का विचार करूं
तो हूं जार पीछे, प्रिये! पहले हूँ कामी मैं !'
4

कह आली, क्या फल है
अब तेरी उस अमूल्य सज्जा का?
मूल्य नहीं क्या कुछ भी
मेरी इस नग्न लज्जा का !
5

सिद्धि-हेतु स्वामी गये, यह गौरव की बात,
पर चोरी-चोरी गये, यही बड़ा व्याघात ।

सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?

मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में -
क्षात्र-धर्म के नाते 
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

हु‌आ न यह भी भाग्य अभागा,
किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा;
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,
पर इनसे जो आँसू बहते,
सदय हृदय वे कैसे सहते ?
गये तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से ?
आज अधिक वे भाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

गये, लौट भी वे आवेंगे,
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,
रोते प्राण उन्हें पावेंगे,
पर क्या गाते-गाते ?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

6

प्रियतम ! तुम श्रुति-पथ से आये ।
तुमहें हदय में रख कर मैंने अधर-कपाट लगाये ।

मेरे हास-विलास ! किन्तु क्या भाग्य तुम्हें रख पाये ?
दृष्टि मार्ग से निकल गये ये तुम रसमय मनभाये ।
प्रियतम ! तुम श्रुति-पथ से आये ।

यशोधरा क्या कहे और अब, रहो कहीं भी छाये,
मेरे ये नि:श्वास व्यर्थ, यदि तुमको खींच न लाये।
प्रियतम ! तुम श्रुति-पथ से आये । 
7

नाथ, तुम
जाओ, किन्तु लौट आओगे, आओगे, आओगे ।
नाथ, तुम
हमें बिना अपराध अचानक छोड़ कहाँ जाओगे?
नाथ, तुम
अपनाकर सम्पूर्ण सृष्टि को मुझे न अपनाओगे?
नाथ, तुम
उसमें मेरा भी कुछ होगा, जो कुछ तुम पाओगे ।
8

सास-ससुर पूछेंगे
तो उनसे क्या अभी कहूँगी मैं ?
हा ! गर्विता तुम्हारी
मौन रहूँगी, सहूँगी मैं ।
नन्द

आर्य, यह मुझ पर अत्याचार !
राज्य तुम्हारा प्राप्य, मुझे ही था तप का अधिकार!

छोड़ा मेरे लिए हाय ! क्या तुमने आज उदार?
कैसे भार सहेगा सम्प्रति, राहुल है सुकुमार?
आर्य, यह मुझ पर अत्याचार !

नन्द तुम्हारी थाती पर ही देगा सब कुछ वार,
किन्तु करोगे कब तक आ कर तुम उसका उद्धार?
आर्य, यह मुझ पर अत्याचार !

Saturday 16 December 2017

गुजरात क्षत्रिय कोली और ठाकोर वोट बैंक

Apart from the upper caste Patidars, another major group that has challenged the supremacy of the Modi government is the OBC Koli community, estimated to constitute over 32 per cent the state's population. The ruling party may find the going tough in elections later this year if significant sections of the Patidars and Kolis drift away from it.
The Kolis are evenly spread across all regions of the state. Socially, they are divided into several sub-sections like Chumadia Koli, Tadapada Koli Rajput, Patanvadia Koli, Baria Koli, Thakor Koli and Koli Patel. Occupationally, there are two sections: sea-based Kolis (those settled in the long coastal belt and engaged in fishing activities) and land-based Kolis (small and marginal farmers and landless labourers).
According to the state OBC commission, there are 136 castes identified as OBC and the Kolis constitute around 42 per cent of the total OBC population. In Saurashtra, which sends 58 out of 182 members in the assembly, Patidars and Kolis together dominate 45 seats.
Politically, the Kolis were traditional voters of the Congress till 1998 (see table). In fact, this group was an important constituent of KHAM, a social alliance the Congress engineered in the state from the mid-70s to mid-80s.
For the Kolis, KHAM brought upward social mobility and they acquired the status of Kshatriya (deemed to be OBCs in Gujarat). For the Congress, it was a powerful strategy to counter the domination of the upper castes. Madhavsinh Solanki (koli), who implemented KHAM, belongs to the OBC Kshatriyas.
However, with the rise of Hindutva forces in the state, the BJP began actively wooing the Kolis in the mid-80s. Two important leaders, Shankersinh Vaghela, an upper caste Rajput but who has always allied with the OBC castes, and Somabhai Patel, presently a dissident MP from Surendranagar, played a vital role in weaning Kolis and other OBC communities from the Congress. Somabhai was the first Koli MLA to be voted on a BJP ticket in the 1985 assembly polls.
... contd

Wednesday 11 October 2017

कोली / कोलिय राजपूत (koli Rajpoot)

कोली ज्यादातर गुजरात,राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश राज्यों का निवासी रहा है। दक्षिण भारत में कोली जाती मुख्य उपजाति मुथूराजा,मुदीराजु,मुथरैयार और आर्यन हैं।

कोली शब्द कोलिय कुल से आया क्योंकि अगर प्राचीन इतिहास उठा के देखते है तब कोलिय कुल का विस्तृत विवरण मिल जाता है।
अंजना कोलिय कोली क्षत्रिय वंश से थे जिनकी पुत्री का विवाह शाक्य कोलिय वंश सुद्धोधन से हुआ । सुद्धोधन के पुत्र सिद्धार्थ हुए जो आगे चल के  गौतम बुद्ध नाम से जाने गए अतः गौत्तम बुद्ध  कोलिय वंश से थे।

भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता मोहनजोदारो के शिलालेखों पर स्पस्ट रूप से मान्धाता कोलिय वंश लिखा हुआ है जो की सूर्यवंशी प्रतापी राजा थे। पृथ्वी विजेता मान्धाता से ही कोली वंश का उदय हुआ मान्धाता के ही वंश में इष्वांकु पैदा हुए इष्वांकु वंश की नींव यही से पडी ।
मान्धाता की 25वी पीढ़ी में भागवान राम का जन्म हुआ ।अतः  मतों के अनुसार भगवान् राम कोलिय इष्वांकु वंश के थे।

महाराष्ट्र में मराठा सासक शिवाजी की सेना में अधिकतर कोलिय क्षत्रिय थे । शिवाजी के सेनापति तानाजी मालुसारे कोलिय क्षत्रिय वंश से ही थे । जिन्हें शिवाजी lion कह कर पूकारते थे।
महाराष्ट्र के मुम्बई का नाम कोलिय कुल देवी मुम्बा देवी के नाम पर रखा गया ।

कोली राजपूत हैं जिनकी कई रियासतोंके बारे में इतिहास में लिखा हुआ है । ब्रिटिश राज में सबसे ज्यादा कोलिय रियासत गुजरात में रही । ब्रिटिश राज में राजपुतो पर क्रिमिनल एक्ट 1871 लगा दिया गया जिस बजह से कोलिओ ने अपना अलग अलग राज्य में जा कर अलग अलग व्यवसाय करने लगे उत्तरप्रदेश देल्ही मध्यप्रदेश राजस्थान में कपड़ो का व्यवसाय किया , पर  अंग्रेजो द्वारा कपडे विदेशो से आने की बजह से दिन पर दिन स्थति ख़राब होति गयी । ब्रिटिश राज में अंग्रेजो द्वारा कोलिओ पर लगाया गया क्रिमिनल एक्ट को देश आज़ाद होने क् बाद भी नहीं हटाया गया और इन्हें denotify ट्राइब में दाल दिया गया इसी बजह से अलग अलग राज्यो में अलग अलग कैटेगिरी में आते हैं । जिस बजह से सूर्यवंशी कोलिय वंश कोली जाती बन के रह गया ।

गुजरात, हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड और राजस्थान में अभी भी कोली अपने नाम के आगे राजपूत लिखते हैं।

राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश के कोरी जाति से आने की बजह से अनुसूचित जाति में आते हैं ।

 श्री राम का जन्म मन्धाता के बाद 25वीं पीढ़ी में हुआ था. एक अन्य राजा ईक्ष्वाकु सूर्यवंश के कोली राजाओं में हुए हैं अतः मन्धाता और श्रीराम ईक्ष्वाकु के सूर्यवंश से हैं. बाद में यह वंश नौ उप समूहों में बँट गया, और सभी अपना मूल क्षत्रिय जाति में बताते थे. इनके नाम हैं: मल्ला, जनक, विदेही, कोलिए, मोर्या, लिच्छवी, जनत्री, वाज्जी और शाक्य. पुरातात्विक जानकारी को यदि साथ मिला कर देखें तो पता चलता है कि मन्धाता ईक्ष्वाकु के सूर्यवंश से थे और उसके उत्तराधिकारियों को ‘सूर्यवंशी कोली राजा’ के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि वे बहादुर, लब्ध प्रतिष्ठ और न्यायप्रिय शासक थे. बौध साहित्य में असंख्य संदर्भ हैं जिससे इसकी प्रामाणिकता में कोई संदेह नहीं रह जाता. मन्धाता के उत्तराधिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हमारे प्राचीन वेद, महाकाव्य और अन्य अवशेष उनकी युद्धकला और राज्य प्रशासन में उनके महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख करते हैं. हमारी प्राचीन संस्कृत पुस्तकों में उन्हें कुल्या, कुलिए, कोली सर्प, कोलिक, कौल आदि कहा गया है
कोलिय राजपूत होने के बाद भी इसे नेहरू और आंबेडकर ने इसे denotify ट्राइब में रखा ।
M A sharing ने अपनी किताब में इस बारे में विस्तृत रूप से लिखा है कि क्यों राजपूत पिछड़ी जाति और अनुसूचित जाति में डाले गए ।
- रजनीश सिंह राजपूत